प्यार नहि (कविता)
इशक के पगडंडी पगले साले,तोर बापक जिरायैत नहि
एगो मरैय राधारानी,चारसँ राधा करैय कखनो प्यार नहि
आसँमा चूमै चरण तोहर,मंदिर साँजल देबाल बनि
अर्पण करि देलौ तन मन,नहि पाबि हिय भरल प्यार नहि
पादूका चूमै, चूमै जायै,खुदा रहमत,ऐतक प्यार नहि
दुनियासँ बटि गेलौ,दिलसँ उतरि गेलौ,अप्पने दाग कनि
मनोरथ कें मन मे राखू,टाका सँ तन मन नहि आकू
जिस्म भेटैत हाथो बजारो में,हिय में कनिको प्यार नहि
हमरा न रहै मालूम,रस्मो रिवाजो के,किया मानैय पाक सहि
प्रेम पूजारी श्रीहर्ष तोरा जानि,करू राधासँ प्यार कनि
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य