प्यार की दरकार
चाह रहा मैं गहन मौन में करना तुमसे प्यार
गहन मौन में तुम न सकोगे मेरा प्यार नकार
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चाह रहा मैं एकाकी ही करना तुमको प्यार
सदा तुम्हारे एकाकीपन पर मेरा अधिकार
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चाह रहा मैं तुम्हें पूजना रहकर तुमसे दूर
दूरी देगी मुझे दर्द से संरक्षण भरपूर
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चाह रहा मैं तुम्हें चूमना चुम्बित करके वायु
मेरे अधरों से कोमलतर दिव्य तुम्हारे स्नायु
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चाह रहा मैं सपने में हो आलिंगित तव देह
सपने में कम नहीं पड़ेगा कभी तुम्हारा नेह
महेश चन्द्र त्रिपाठी