क्षितिजोत्सव
❤️”क्षितिजोत्सव”❤️
क्यों रहा रजनी से
प्रश्न बारम्बार..
सहचरी तुम स्वप्नों की
खड़ी नयनों के द्वार।।
मेघ विद्युत अलंकारित
विभ्रम मायाजाल..
पंकित हृदय तेरा नही
मुकुल कलित सुवास।।
धर कर के उर मे हिमकर
तुषारापात अवनि पर..
दहक रही अन्तर ज्वाला
ज्यों घृत पड़े अग्नि पर।।
निशा बिम्ब शनैः शनैः
मुखरित मुकुल खिलाय..
कालरात्रि कनक किरण
ज्यों ज्यों बढती जाए।।
जलधि तरंगिणी निहार चितवन
शशि मुख दर्पण पाए..
नतमस्तक मेघ वेग वायु जल भी
क्षितिज उत्सव मनाऐ।।
नम्रता सरन “सोना”
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