प्यार का सागर सूख गया …
धरती का सागर बहुत नमकीन है,अभी सूखा नही ,
मगर प्यार के सागर में न नमक बचा न पानी ।
जब भावनाओं की नदिया ही सूख गई प्रत्येक ,
ह्रदय में एक अंश भी न बची नमी।
तो वो सागर फिर सागर कहां रहा ! नदियां
क्या अर्पण करे सागर को ? पूछे ह्रदय की जमीं ।
अब तो आंखों में भी पानी न रहा ,
ना शर्म का ,ना आंसुओं का !
इंसान इंसान ना रह गया ,बन गया उपकरण मशीनी ।
ईश्वर ने जग में एक अनमोल कृति बनाई थी ।
जिसका नाम है इंसान।
ह्रदय दिया था उसे और उसमें भरा था प्यार का सागर ,और भावनाओं की नदी का पानी ।
मगर अब सब कुछ सूख चुका है ।
अब कुछ बाकी न रहा ।
ना धरती पर ! ना इंसान के ह्रदय में ।
दोष किसको दें ? यह किसकी है नादानी ?