प्यार का रंग (सजल)
प्यार का रंग (सजल)
नहीं प्यार का रंग फीका पड़ेगा।
गमकता चमन सा सदा यह खिलेगा।
सनातन पुरातन नवल नव्य नूतन।
सदा यह सुहागन हृदय सा दिखेगा।
बड़े भाग्य का फल सदा प्यार होता।
विगत जन्म सत्कर्म का रस मिलेगा।
मिलेगा कभी साथ ऐसे पथिक का।
चलो संग प्यारे निकट आ कहेगा।
पकड़ बांह हरदम सजायेगा डोली।
मिला कर कदम से कदम वह चलेगा।
थिरक कर मचल कर दिखायेगा जलवा।
तुम्हारे हवाले वतन वह करेगा।
अधर को अधर से मिलाये सदा वह।
वदन को वदन से सहज बांध लेगा।
बड़े नम्र आगोश में भर तुझे वह ।
मिलन की सहज रात यौवन भरेगा।
साहित्यकार: डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी