प्यार का पंचनामा
प्यार का पंचनामा कुछ हुआ इस तरह कि,
प्यार तो बचा नहीं,
बस कुछ प्यार के शेष-अवशेष बचे हैं,
कहने को बहुत कुछ है किंतु,
बयां करने को कुछ नहीं बचा।
……………
प्यार में हकीकत और कपोल कल्पना में अंतर होता है,
हकीकत से कोसों दूर होती है कल्पना का संसार,
कई बार कल्पना का राजकुमार,
हकीकत का सुदामा ही निकलता है,
जिसे चाहो उसे हासिल कर लो यह जरूरी नहीं है,
अक्सर खामोशी में ही जिंदगी का,
सफर बीत जाया करता है,
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खामोशी भी प्यार का एक पैरामीटर है,
चाहत की एक कसौटी है खामोशी भी,
जिसे लफ्जों में जाहिर नहीं किया जा सकता है,
सिर्फ और सिर्फ सोच पर आधारित है,
ख़ामोशी और प्यार का सफ़र, और,
इसी ख़ामोशी में छिपी है प्यार की मंजिल,
और प्यार का पंचनामा भी,
आर- पार का अंतर्द्वंद होता है दोनों में,
और अजीब सी कसमश होती है,
दोनों के सफ़र में।
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डॉ प्रवीण ठाकुर,
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय, भारत सरकार।
शिमला हिमाचल प्रदेश