पैसा बोलता है…
दोहा ….
बोल रहा पैसा यहाँ, घर-घर में आवाज।
चाह रहे पाना सभी, इस पैसे का ताज।। 1
जान रहे सब खूब हैं, इस पैसे का राज।
जाता है इससे बदल, जीने का अंदाज। 2
पैसा जिसके पास है, वह सक्षम इंसान।
लोग इसी से पा रहे, खाँची भर सम्मान।। 3
पैसे ने है कर दिया, बौना हर सम्बन्ध।
जीना इससे हो रहा, जैसे अब अनुबंध।। 4
धुँधले होते जा रहे, पैसे बिन अरमान।
दर्जा देने लग गये, लोग इसे भगवान।। 5
होना दुष्कर मानिए, बिन पैसे है काम।
सुविधा के बाजार में, दौड़ रहा है दाम।। 6
पैसे की चर्चा जगत, पैसे का जयगान।
पैसे से ही हो रहा, दुर्जन का गुणगान।। 7
पैसा जीवन के लिए, बना एक उद्देश्य।
पाने वाले पा रहे, पद सम्मान विशेष्य।। 8
दूषित पैसे से हुआ, अन्तर्मन का भाव।
कोस रहा है देखिए, जैसे एक अभाव।। 9
लोभी जो हैं हो रहे, बस पैसे की भूख।
हरियाली उद्यान की, उनके जाती सूख।। 10
डाॅ.राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)