*प्रकृति के हम हैं मित्र*
पेड़ पौधे मिट्टी और नदियांँ, औलादें इसकी सारी।
फर्ज हमारा रक्षा करना, समझो तुम जिम्मेदारी।
तुम्हारे कारण आज दिखती,विवश बनी वो लाचारी।
प्रकृति के हम हैं मित्र, प्रकृति है मांँ म्हारी।।१।।
छेड़-छाड़ तुम कभी करो ना ,यह हमारी शान है।
आज मनुज करता कुछ ऐसा, बना हुआ हैवान है।
दया दिखाओ इस पर कुछ तो, संकट में है अब भारी।
प्रकृति के हम हैं मित्र, प्रकृति है मांँ म्हारी।।२।।
भक्षक आज बना हुआ है, ऐसी उसकी तैयारी।
आधुनिकता की दौड़ में अंन्धा, बना हुआ है लाचारी।
जिस गोद में पला बढ़ा वो,आज उसको ही लात मारी।
प्रकृति के हम हैं मित्र, प्रकृति है मांँ म्हारी।।३।।
छोड़ो सारा लोभ और लालच, इस पर दो कुछ ध्यान।
मांँ की इज्जत रक्षा करना, यही मान सम्मान।
दुष्यन्त कुमार खुद इसका बच्चा है,इसकी माया है न्यारी।
प्रकृति के हम हैं मित्र, प्रकृति है मांँ म्हारी।।४।।