पेड़ पौधे (ताटंक छन्द)
पौधे-पेड़ धरा के गहने, मिलकर धरा सजाते हैं।
ये जीवों का पोषण करते, पर्यावरण बचाते हैं।
चम्पा, जूही, बेला, गेंदा, उपवन को महकाते हैं।
इनका ही रस लेकर भौरे, मस्त मगन हो जाते हैं।
आम, पपीता, लीची, अमरुद, हम बच्चों को भाते हैं
इनको खाकर ही हम सब, ताकतवर बन जाते हैं।
पेड़ों की डालों पर ही तो, चिड़िया करे बसेरा है।
कलरव से ही होता जिनके, पावन सुखद सवेरा है।।
बुलबुल, कोयल, तोता-मैना, नगमें खूब सुनाती हैं।
बांसों की झुरमुट में छिपकर, हम सबको ललचाती हैं।
हरे भरे पौधों से बादल, घुमड़ घुमड़ कर आते हैं।
सावन भादों की हरियाली, देख तभी हम पाते हैं।।
इनकी ही छाया में आकर, राही प्यास बुझाता है।
मदमस्त हवा के झोकों से, तन-मन खुश हो जाता है।।
प्राणवायु के दाता पौधे, होते सब हितकारी हैं।
बिना स्वार्थ के सब कुछ देते, दधीचि से उपकारी हैं।।
होंगे नहीं पेड़ तो सोचो, कौन हवा को लायेगा।
निर्जन होगी धरती अपनी, सब तबाह हो जायेगा।।
फिर भी मानव समझ न पाता, विपदा कितनी भारी है।
निर्मम इनको काट रहा वो, बनकर अत्याचारी है।।
नाथ सोनांचली