पेड़ों ने जगह दी ना शाख़ों पे नशेमन है
पेड़ों ने जगह दी ना शाख़ों पे नशेमन है
टूटा हुआ पत्ता हूँ उड़ जाऊँ या गिर जाऊँ
पत्थर हूँ रास्ते का शम्मा हूँ अंधेरे की
ठोकर से बिखर जाऊँ रातों में पिघल जाऊँ
तन्हाई की ख़ामोशी जज़्बात की सरगोशी
कुछ पल को संभल जाऊँ एक पल को मचल जाऊँ
मुश्किल समय लम्बा था जिसकी हमें आदत थी
अब बदले समय के संग झट कैसे बदल जाऊँ
शोला हूँ चाँदनी हूँ छाया हूँ रोशनी हूँ
जब दिन खिले छुप जाऊँ जब रात हो जल जाऊँ
कंचन