#पूज्य पिता जी
पिता उजाला बन जीवन का, अँधियारा घोर मिटाए।
परिवार हेतु निज सुख भूले, हर चिंता दूर भगाए।।
माता धरती आकाश पिता, प्रतिपल में मंगलकारी।
स्नेह सुधा का पान कराए, निश्छल नित जीवन पारी।।
संतान चढ़े सोपान नये, फलीभूत संस्कारों में।
सोच पिता की कमी न छोड़ूँ, क्षणभर भी व्यवहारों में।।
माता दुख में रो देती है, हिम्मत पिता बढ़ाता है।
दर्द छिपाकर हँस लेता है, मरहम ख़ुद बन जाता है।।
भूल भुलाता संतानों की, अवसर अभिनव देता है।
नैनों की अभिलाषाओं को, पलभर में पढ़ लेता है।।
माँग-पूर्ति सम दम से करता, बच्चों के अरमानों की।
सहज सुघर जीवन देता है, चाल मोड़ तूफ़ानों की।।
कामयाब जब संतान बने, सीना चौड़ा हो जाता।
इसी ख़ुशी का गीत बनाकर, सबके आगे है गाता।।
सच्ची पूँजी औलाद यहाँ, वैभव मात्र छलावा है।
औलाद सही सब सही यहाँ, नेक पिता का दावा है।।
हृदय पिता का तोड़ न देना, पिता तुझे भी बनना है।
इसी अग्नि में एक दिवस फिर, काश! यादकर जलना है।।
आशीष पिता का पाकर हम, अंबर भी छू सकते हैं।
चलें दिखाई राहों पर जो, मंज़िल पर ही रुकते हैं।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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