पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
समीक्षा— विपश्यना (उपन्यास)
लेखिका– इंदिरा दांगी
विपश्यना उपन्यास विदुषी इन्दिरा दांगी जी द्वारा जीवन की अनुभूतियों अनुभव को समेटे काल कलेवर के परिवर्तित आचरण कि अभिव्यक्तियों का बेहद सुंदर शसक्त सृजन है विपश्यना ।
विपश्यना उपन्यास भावभिव्यक्ति प्रत्येक व्यक्ति समाज को स्पर्श एव स्पंदित करती है निश्चय ही इंदिरा दांगी जी का प्रयास सराहनीय है साथ साथ उपन्यासकारो के लिए प्रेरक एव अनुकरणीय है ।
विपाश्यना अतीत को वर्तमान के प्रसंग में पिरोती आधुनिकता एव पुरातन संस्कृति के परिवर्तन मूल्यों प्रभावों कि अभिव्यक्ति कही जा सकती है ।
सम्बन्धो कि संवेदना एव आचरण में सामयिक परिवर्तन मेरे अनुसार से इंदिरा दांगी जी कि अभिव्यक्ति कि वास्तविकता है या होनी चाहिए ।
#यार वो तुम्हारा समान है?
अंदर रख दुं?
मैं रखवाए लेती हूँ साथ मे।
नही ।मैं रखवाए लेती हूँ।
गुड़िया को सोफे पर लिटाकर दो मिनट में अपना पूरा सामान रिया स्टोर रूम में रखकर दरवाजा बंद कर आई।
अब तक तो वह अपार्टमेंट से बाहर आ गया होगा चेतना ने दरवाजा खोला और राह देखने लगी सहेली को जैसे पल भर के लिए भूल गयी ।रिया क्षण भर के लिए स्तब्ध रह गयी धक्के मारकर निकलना और क्या होता है?#
परिंदा बीहड़ो के अंश बहुत स्प्ष्ट कहते है कि संवेदनाओं सम्बन्धो एव समय परिवेश के सामजस्य एव बदलते समाज कि भौतिकता का सच ही है विपश्यना।
उपन्यास विपश्यना मानवीय मूल्यों पर केंद्रित एव प्रभावी है भारतीय साहित्य विशेषकर हिंदी साहित्य कि स्वतंत्र भारत के परिवेश से प्रभवित एव आच्छादित है कही कही विदुषी उपन्यासकार ने उस परिवेश को तोड़कर स्वंय के स्वतंत विचारो के परिंदे से शोभायमान करने की कोशिश अवश्य किया है जो निश्चय ही उपन्यासकारों के लिए प्रेरणास्रोत है।
# गैस कांड में विधवा हुई औरतों के लिए ये हज़ारों फ्लेट बनवाए गए थे शहर से बीस तीस किलोमीटर वीराने में ।अपने बच्चों के साथ औरतें यहां रहने भी आ गयी लेकिन सरकार ने यह नही सोचा कि शहर से दूर वो क्या तो रोजगार पाएंगी और किस तरह महफूज रहेंगी ।ये कालोनियां शोहदों बदमाशों का अड्डा बन गयी ।कुछ औरतें महरियों का काम करने शहर जाने लगी कुछ अपने फ्लैट किराए पर चढ़ा कर चली गयी ।कुछ जो ये न कर सकती थी या तो अपना जिस्म बेचने लगी या भीख मांगने लगी#
उपन्यासकार ने विकास विनाश के मध्य परिवर्तन एव उसके प्रभाव का यथार्थ चित्रण किया है विधवा कि कालोनी के उक्त अंश चिख चीख कर कहते है साथ ही साथ शासन सत्ता को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति सतर्क करते हुए भविष्य के लिए सकेत देता है ।विज्ञान यदि विकास का उत्कर्ष है तो विनाश का अंतर्मन जिसके परिणाम बहुत हृदयविदारक होते है नारी अन्तर्मन कि व्यथा उपन्यासकार ने बहुत सार्थक तार्किक सत्यार्थ स्वरूप में प्रस्तुत किया है।
#वो रो रही है वह पहली बार अपने पिता के लिए बिलख बिलख कर रो रही है ।ये आंसू तर्पण के है ।और तालाब को छूकर आती हवा उसके बालो को छुआ ।तपती दोपहर में भी कितना शीतल स्पर्श जैसे आशीर्वाद कोई ।वो चुप चाप सीढ़ियों पर बैठी रही – किंकर्तव्यविमूढ़।#
उपन्यासकार भोपाल कि ऐतिहासिक घटना यूनियन कार्बाइट गैस ट्रेचडी एव उस नकारात्मक विज्ञान प्रभाव से प्रभावित समय समाज कि वेदना मनःस्थिति का बाखूबी प्रस्तुतिकरण किया है तो सार्वजनिक चेतना कि जागृति का संदेश शासन सत्ता समय समाज को देने की पूरी निष्ठा के साथ ईमानदार प्रयास किया है जो एक जिम्मेदार साहित्यकार या नागरिक का कर्तव्य होता है ।
संक्षेप में कहा जाय तो विपश्यना कि सोच समझ एव धरातल पृष्टभूमि एव प्रस्तुति बहुत मार्मिक एव संदेश परक है कही कही अतिरेक में कदाचित भटकती है जो बहुत सीमित है ।
विपश्यना साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जो समय समाज विकास विनाश परिवर्तन कि परम्पराओ एव प्रक्रियाओं में पाठक को सकारात्मक संदेश देता सजग करता है।
विपश्यना व्याकरण कि दृष्टिकोण से त्रुटिहीन एव प्रकाशन कि स्तर पर उत्कृष्ठ उपन्यास है।
उपन्यास कि विशेषता यह होती है कि उसके पात्र समय समाज के साथ साथ सदैव जीवंत रहे एव उन्हें प्रत्येक मनुष्य स्वंय में अनुभव कर जीवंत हो सके निः संकोच इंदिरा दांगी जी अपने नामके अनुरूप कालजयी कृति उपन्यास समय समाज को प्रस्तुत किया है विपश्यना का प्रत्येक पात्र वर्तमान समाज के प्रत्येक जीवन का सच है और भविष्य में भी विपश्यना अपने सत्यार्थ का संदेश देता रहेगा।
विदुषी लेखिका इंदिरा दांगी जी
अपनी कृति विपश्यना को प्रस्तुत कर सकारात्मक संदेश देते हुए अपने उद्देश्य में बहुत हद तक सफल है
हिंदी साहित्य कि बेजोड़ शसक्त हस्ताक्षर विदुषी इंदिरा दांगी जी के अनुकरणीय कृति विपश्यना के लिए उनकी योग्यता दक्षता का अभिनंदन।।
समीक्षक नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।