*** पुद्दुचेरी की सागर लहरें…! ***
” पुद्दुचेरी के तट पर बैठा आवारा मन…
देखता नजर नीला आसमान…!
कानों में शोर मचाते हवाओं के जोर..
और विभिन्न विचारों के हिलोर…!
फिर देखा मैंने, सागर के उन लहरों को…
जो हवाओं के साथ लहराती…!
कभी इठलाती, मचलती और…
हो जाती वो शांत अनायास…!
कभी करती भरसक प्रयास…
छु लेने असीम अनंत आकाश…!
कभी कलकल, स्वर-मधुर…
गाती शायद ,जीवन जीने की कुछ गीत…!
फिर टकरा जाती सागर तट से…
मुझसे मिल शायद वो..
कुछ कहना चाहती थी, जीवन की रीत…!
और पुनः लौट जाती ये तरंग…
अपने सहगामी लहरों संग…!
यह पुनरावृत्त…
देखे कई बार, मेरे आंखों ने…!
अहसास किए मेरे विचारों ने…!!
गिरना, उठना, फिर गिरना…
एक बार नहीं, अनेक बार..!
टकराना, संभलना, फिर चलना…
और अनवरत कायम रखना अपनी चाल..!
यही कहना चाहती थी शायद…
ये सागर की लहरें…!!
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