*पीड़ा*
पीड़ा
दुख की बातें,
मत करो मुझसे।
शायद मेरा ह्रदय,
याद ना कर सके।
वो पीड़ा-युक्त रातें,
जहां खड़ी ललाट पर।
ढूंढ रही थी,
खुशियों का
तिनक सवेरा।
जहां अश्रु-धारा को,
मिल न रहा था,
कोई किनारा।
रास नहीं आता था,
सावन।
पतझड़ सा था,
अपना बसेरा।
जहां बह रहा था,
अश्रु हर क्षण,
बारिश की,
बूंदों की भांति ।
बादल के समान थी,
पीड़ा ह्रदय में।
जो फट कर दे रहा था,
अनगिनत बूंदे।
वो बूंदे जो,
भरती नहीं सागर।
अपितु कर देती हैं,
हल्का मन को।
दिन में कार्यों के बोझ तले,
बांट देती थी,
मेरा मन।
परंतु रात्रि का बोझ,
लगता था,
सदियों सामान।
मत करो बातें ,
दुख की मुझसे अब।।
बातें करो,
सूर्य की लालिमा की,
जो चमक दे जाए,
मुख पर मेरे।
बातें करो चांद की,
जिस पर दाग तो है।
पर जो है,
सौन्दर्य की मिसाल।
मत करो बातें मुझसे,
दुख की,
असांत्वना की,
पीड़ा की।।
बस बातें करो,
मुझसे खुशियों की,
प्रेम की,
व सांत्वना की।
जिससे भूल सकूं,
वह काली रातें,
और असहनीय पीड़ा।।
डॉ प्रिया।
अयोध्या।