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2 Feb 2021 · 1 min read

पिय को पाती

मत्तगयंद सवैया विधान = भगण X 7 +गुरु+गुरु
पिय को पाती

छोड़ि गये किस कारण से अब ढूंढ रही अँखिया दिन राती।
भूल गये परदेश बसे यह सोच सदा धड़के निज छाती।
कारन कौन जु पात पढ़ी नहि लाख लिखी पिय को प्रिय पाती।
भेज रही खत रक्त सनी बस मान यही अब अंतिम थाती।।

देख दशा हिय की सजना सच पागल सी दिन-रात रहूं मैं।
नैन बसा छवि नित्य सतावत सोवत जागत राह गहूं मैं।
भेज रही खत पीर भरा अब कौन विधा यह घात सहूं मैं।
सोच रही पिय से मिल लूं उर से उर की कछु बात कहूं मैं।।

उत्तर – दक्खिन पूरब – पश्चिम साजन को अब ढूंढत नैना।
धाम मिला गर बालम का उनसे मिलकै मिलिबै हिय चैना।
पात लिखी यह बोल सखी अब आप बिना यह जीवन छैना।
आन मिलो शुभ ही शुभ से तव टोह रही मृदु मोहक रैना।।

घोषणा:- यह रचना पूर्णतः स्वरचित, स्वप्रमाणित एवं मौलिक है

✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा ( मंशानगर ), पश्चिमी चम्पारण, बिहार
? 9560335952

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