पितृपक्ष
पितृपक्ष
°°°°°°°°
फल्गु नदी का पावन तट हो ,
साथ में वृक्ष अक्षयवट हो।
पितृपक्ष पखवाड़े में पुण्यतिथि देख ,
हम पितरों को तर्पण करते हैं।
अंजुलि में जल पुष्प लिए हम ,
श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
पितृपक्ष हमारा सनातन संस्कृति है ,
हम नहीं इसे विस्मृत करतें हैं।
दशरथ की आत्मा आतुर थी ,
राम लखन कहीं दूर गए थे।
माँ सीते ने पिण्डदान किया था तब ,
आकुल आत्मा फिर तृप्त हुई थी।
श्रीराम क्रुद्ध हुए आकर जब,
साक्ष्य मुकर गए थे डर से लेकिन।
माँ सीते ने श्राप दिया था ,
फल्गु नदी तब से सूखी हैं ।
सोलह दिनों के पितृ पक्ष में हम ,
चक्षु नीर लिए विनती करते हैं ।
फल्गु नदी हो या कोई अन्य स्थल पर ,
पिंडदान अर्पित करते हैं ।
नक्षत्र से उतरे बिछुड़े परिजन ,
स्नेह आशीष की बारिश करते हैं ।
न आयेंगे लौटकर कभी वे ,
फिर भी हम उन्हें स्मरण करते हैं।
पितृपक्ष पाखंड नहीं है ,
ये तो एक समर्पण है ।
भावुक और सजल नेत्रों से ,
स्नेह श्रद्धा का अर्पण है ।
आज श्रद्धा भाव तिरोहित हो रही है ,
यदि जीते जी तिरस्कार और नफरत ।
तो फिर ये श्राद्ध और तर्पण बेकार है ,
मृत्युपुर्व करो पितृसेवा,पितृपक्ष तो एक आधार है।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०३ /१०/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201