Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 May 2017 · 7 min read

रमेशराज के कुण्डलिया छंद

कुंडलिया छंद
——————————————-
जनता युग-युग से रही भारत माँ का रूप
इसके हिस्से में मगर भूख गरीबी धूप ,
भूख गरीबी धूप, अदालत में फटकारें
सत्ता-शासन इस भारत माँ को दुत्कारें ,
बहरे-से सिस्टम के अब कानों को खोलें
अब्दुल रामू आओ जनता की जय बोलें |
+रमेशराज
——————————————–

कुंडलिया छंद [ एक अभिनव प्रयोग ]
——————————————-
डीजल भी महंगा हुआ , बढ़े प्याज के दाम
दाम न जन के पास अब , क्या होगा हे राम ,
क्या होगा हे राम , ट्रेन में चलना मुश्किल
मुश्किल यूं हालात बैठता जाता है दिल ,
दिल कहता महंगाई डायन खाती पल-पल
पल-पल ये सरकार बोलती सस्ता डीजल |
++रमेशराज ++

————————————-
कुंडलिया छंद
——————————————-
पोदीना सँग प्याज की चटनी कर तैयार
इस चटनी को रात-दिन मल रोटी पर यार ,
मल रोटी पर यार , छोड़ सब्जी का झंझट
महंगाई डायन को तू मारेगा झटपट ,
कूल-कूल हो देह न आये यार पसीना
चटनी का ले रूप अगर हो प्याज-पुदीना |
++रमेशराज ++

——————————————
-कुंडलिया छंद
——————————————-
दिन अच्छे आने लगे , केवल इतना बोल
छोड़ ट्रेन का सफर तू , पैदल-पैदल डोल |
पैदल-पैदल डोल , स्वस्थ नित होगी काया
तुझसे कोसों दूर रहे बीमारी-छाया ,
पैट्रोल का दंश न झेलेगा तू बच्चे
ला सकता अब केवल ऐसे ही दिन अच्छे |
++रमेशराज ++

———————————————-
-कुंडलिया छंद
——————————————-
लाज बचा रे मोहना द्रौपदि रही पुकार
लज्जा रहे उघार खल , लज्जा रहे उघार |
लज्जा रहे उघार,”रेप” का भी है खतरा
मोहन अब आ, मोहन अब आ, मोहन अब आ,
कान्हा आ रे कान्हा आ रे कान्हा आ रे
लाज बचा रे लाज बचा रे लाज बचा रे |
++रमेशराज ++

—————————————–
-कुंडलिया छंद
——————————————-
हत्यारे प्यारे लगें , भायें तस्कर – चोर
कवि उसको तू चोट दे जो परिवर्तन ओर |
जो परिवर्तन ओर, वाण सब उस पर तेरे
क्यों भाते हैं बोल तुझे ये तम के घेरे ,
बाल्मीकि का वंश लजा मत ऐसे प्यारे
चला उन्हीं पर तीर असल में जो हत्यारे |
++रमेशराज ++

——————————————
– कुंडलिया छंद
———————–
घोटालों की बहस को जो देते हैं छोड़
महंगाई के प्रश्न पर चर्चाएँ दें मोड़ ,
चर्चाएँ दें मोड़, सत्य से दूर भागते
मर्यादा हर बार मिलें जो सिर्फ लांघते ,
जन को लेते लूट छल-भरे जिनके नारे
चाहे तू मत मान भगोड़े वे हैं प्यारे |
++रमेशराज ++

————————————
-कुंडलिया छंद
——————————————-
दिन अच्छे आने लगे , केवल इतना बोल
छोड़ ट्रेन का सफर तू , पैदल-पैदल डोल |
पैदल-पैदल डोल , स्वस्थ नित होगी काया
तुझसे कोसों दूर रहे बीमारी-छाया ,
पैट्रोल का दंश न झेलेगा तू बच्चे
ला सकता अब केवल ऐसे ही दिन अच्छे |
++रमेशराज ++

————————————————
-कुंडलिया छंद-
————————————————-
अन्तर-अन्तर आज है अंधकार अति आह
मंद मंद मुस्कान हत, चंचल चपला चाह|
चंचल चपला चाह, दाह दुःख-दर्द दबोचे
लाइलाज लगते अब लम्बे-लम्बे लोचे ,
राम राम हे राम रमेश न दीखे रहबर
अन्तर्मुखी आज अपना अति ओजस अन्तर||
+ रमेशराज +

——————————————
कुण्डलिया छंद-
——————————————-
भारत-भर में भय भरें भूत-रूप-से भूप
रश्मिद रहें न राहबर, रखें राहजन रूप |
रखें राहजन रूप, कर्म से काले-काले
हत्यारे ही आज हमारे हैं रखवाले,
सुन रमेश रे आज ताज जिनका है उन्नत
आहत अवनत आहों में रत उनसे भारत ||
—रमेशराज—

————————————-
कुंडलिया छंद –
————————————–
क्रन्दन मन आंसू नयन, अब जन-जन लाचार
भारी अत्याचार का और दौर इस बार |
और दौर इस बार, कहीं इज्जत पर डाके
असुर सरीखे रूप कहीं दिखते नेता के,
सुन रमेश रे आज मिलें बस सिसकन-सुबकन
कहीं निबल पर वार, कहीं नारी का क्रन्दन ||
|| रमेशराज ||

—————————————-
कुंडलिया छंद
———————————
बेचारी नारी बनी हारी-हारी हीर
प्रेम नहीं अब रेप है बस उसकी तकदीर ,
बस उसकी तकदीर, नीर नित नीरज नैना
अब पिंजरे के बीच सिसकती रहती मैना |
सुन रमेश हर ओर खड़े कामी व्यभिचारी
इनसे बचकर किधर जाय नारी बेचारी ||
|| रमेशराज ||

————————————
कुंडलिया छंद—–
————————————-
हर कोई इससे डरे , ऐसा बना दबंग
तंग करे खल संग ले , देख नंग के रंग |
देख नंग के रंग , भंग ये करे अमन को
यह देता अपमान तुरत केवल सज्जन को ,
सुन रमेश की बात , बने सबका बहनोई
देख-देख कर नंग काँपता है हर कोई ||
—–रमेशराज ——-

——————————————-
कुंडलिया छंद
——————————————–
पल-पल छल-बल का यहाँ न्याय बना पर्याय
नैतिकता इस देश में हाय-हाय डकराय |
हाय-हाय डकराय, गाय ज्यों वधिकोँ-सम्मुख
इस युग के सरपंच आज देते जन को दुःख ,
सुन रमेश की बात सभी जन इतने बेकल
थाने या तहसील बीच अब रोयें पल-पल ||
— रमेशराज —

——————————————
कुंडलिया छंद —
——————————————-
बादल का जल छल बना, पल-पल सूखें खेत
ताल-ताल तृष्णा तपन, राह-राह पर रेत |
राह-राह पर रेत, प्रेत पापी सूखा के
पजरे पात प्रसून पुलकती हर बगिया के,
सुन रमेश अब खेत-बीच क्या घूमेगा हल
तब ही बोयें बीज मेह दे निष्ठुर बादल ||
—— रमेशराज ——

————————————–
कुंडलिया छंद
—————————————
आते ही यारो सुबह होता एक कमाल
मौसम टाँके फूल के बटन पेड़ की डाल |
बटन पेड़ की डाल, धूप जल करे गुनगुना
फैले फिर आलोक धरा पे और चौगुना,
सुन रमेश की बात, कोहरा हट जाते ही
कोयल फुदके डाल, कूकती दिन आते ही |
—– रमेशराज —–

———————————
कुंडलिया छंद ||
———————————-
सत्य यही है आजकल हर दल आदमखोर
हिम्मत हो तो बोल तू सिर्फ चोर को चोर |
सिर्फ चोर को चोर, न भरमा यह-वह अच्छा
ढीले सबके आज लंगोटे लुन्गी कच्छा ,
इतना मान रमेश सियासत बाँट रही है
जाति-धर्म का सार यही है, सत्य यही है ||
— रमेशराज —

——————————————-
— कुंडलिया छंद —
——————————————–
मुख पर मस्ती, मृदुल मन, मंद-मंद मुस्कान
रीझ-रीझ रति-रूप हम लगे लुटाने प्रान |
लगे लुटाने प्रान, पुकारें पल-पल प्रियतम
हैं हिम-सी को देख हमेशा ही हर्षित हम,
इतना समझ रमेश कोकिला-सम रमणी-स्वर
मंद-मंद मुस्कान मस्तियाँ मोहक मुख पर ||
|| रमेशराज ||

————————————-
|| कुण्डलिया ||
—————————————-
देशभक्त को आज हम बोल रहे गद्दार
उन्हें मान दें, देश को जिनने लिया डकार |
जिनने लिया डकार, सराहें निश-दिन उनको
समझें सच का रूप पाप के हर अवगुन को,
सुन रमेश की बात सत्य को हम दुश्मन-सम
कहें डकैतों-देशद्रोहियों का दलदल हम ||
+ रमेशराज +

————————————-
— कुंडलिया छंद —
————————————–
मृदुला मृगनयनी मधुर मन में मुदित अपार
अंग-अंग आभा अजब और गजब का प्यार |
और गजब का प्यार, यार हर बार हंसे यों
इक गुलाब की डाल यकायक फूल खिले ज्यों,
सुन रमेश संदेश प्यार का अजब-गजब-सा
जब खोले वह केश करे जादू-सा मृदुला |
++ रमेशराज ++

—————————————-
— कुंडलिया छंद —
—————————————–
गिद्धों-बाजों से रखे हर दल गहरी प्रीति
यही उदारीकरण की बन्धु आजकल नीति |
बन्धु आजकल नीति, रीति शासन की ऐसी
भले नाम जनतंत्र, लोक की ऐसी-तैसी,
सुन रमेश अब मुक्ति कहाँ इन लफ्फाजों से
नेताओं ने रूप धरे गिद्धों-बाजों से ||
++ रमेशराज ++

————————————-
— कुंडलिया छंद —
—————————————
सिस्टम से नाराज हो लिये तिरंगा हाथ
जो कहते थे क्रांति के, रहें हमेशा साथ,
रहें हमेशा साथ, आज वे “कमल” खिलाएं
अब चिल्लाते “आगे आयें, देश बचाएं ”
“जोकपाल” को लाकर वे अब खुश हैं हरदम
बदल दिया लो क्रांतिकारियों ने ये सिस्टम |
+ रमेशराज +

———————————–
— कुंडलिया छंद —
————————————–
ओ री कलदा कोकिला पल-पल कल दे और
प्रकटे प्रेम-प्रकाश अति, रति को बल दे और |
रति को बल दे और, निवेदन है इतना-भर
तर हो अन्तर, तर हो अन्तर, तर हो अन्तर
मिलने को आ, मिलने को आ, मिलने को आ
ओ री कलदा, ओ री कलदा, ओ री कलदा ||
+ रमेशराज +

———————————-
— कुंडलिया छंद —
———————————–
पागल मजनू-सा फिरूं लैला की ले आस
प्यास, प्यास ही प्यास है, प्यास, प्यास ही प्यास |
प्यास, प्यास ही प्यास, रोग ही रोग-रोग हैं
पागल है, पागल है पागल, कहें लोग हैं ,
सिर्फ प्रेम-पल, सिर्फ प्रेम-पल, सिर्फ प्रेम-पल,
मिलन, मिलन में मिलन मांगता ये मन पागल ||
+ रमेशराज +

———————————-
— कुंडलिया छंद —
———————————–
पत्थर-सम नैना भये, अब न अश्रु की धार
हिचकी आहें रह गईं, घर-घर अब की बार |
घर-घर अब की बार, जिंदगी चिथड़े-चिथड़े
अंग-अंग हैं भंग बमों से टुकड़े-टुकड़े ,
प्रिय को लेकर व्यथा भयंकर अब तो घर-घर
तन सब पत्थर, मन सब पत्थर, जन सब पत्थर ||
+ रमेशराज +

————————————-
कुंडलिया छंद —
————————————–
गायें कैसे गीत जो गुंडों से भयभीत
लूट ले गये हर लहर, जीवन का नवनीत |
जीवन का नवनीत, बेटियाँ बहुएं कांपें
आतंकित हो आज ” रेप ” के भय को भापें ,
गली बलाएँ, नगर बलाएँ, गॉव बलाएँ
क्या मुस्काएं ? क्या हर्षाएं ? क्या अब गायें ?
+ रमेशराज +

———————————-
— कुंडलिया छंद —
————————————
रति की रक्षा के लिये करना पड़ता युद्ध
प्रेम न युद्ध विरुद्ध है, युद्ध न प्रेम विरुद्ध |
युद्ध न प्रेम विरुद्ध, विवश हो जहां दामिनी
बात लाज की, बात लाज की, बात लाज की,
वहां प्रणय तज, रति की लय तज, गुस्सा अच्छा
खल ललकारो, तब ही होगी रति की रक्षा ||
+ रमेशराज +

———————————–
कुंडलिया छंद —
————————————–
क्रन्दन के स्वर हैं यहाँ, अबला नैनों नीर
निर्बल को अपमान के रोज तीर ही तीर |
रोज तीर ही तीर, पीर जन के मन भारी
दीन-हीन को देख सिसकती रूह हमारी,
आहों में मन, आहों में मन, आहों में मन
मन में क्रन्दन, मन में क्रन्दन, मन में क्रन्दन ||
+ रमेशराज +

————————–
— कुंडलिया छंद —
—————————
नौसिखिया नव सोच पर छोड़ न ऐसे तीर
नौसिखिया पहली किरण तम को देती चीर |
तम को देती चीर, जटायू था नौसिखिया
जितना वो कर सका, बचायी उसने “सीता”,
खुदीराम नौसिखिया ने गोरे ललकारे
नौसिखिया ही मंगल करते जग में प्यारे ||
+ रमेशराज +

—————————————-
— कुंडलिया छंद —
——————————————
सूरज पर मढ़ दोष जो तम को करते पुष्ट
कवि-कुल में भी आज हैं शोभित ऐसे दुष्ट |
शोभित ऐसे दुष्ट, सत्य को ये दुत्कारें
जो चाहें बदलाव उसे व्यंग्यों से मारें,
सुन रमेश अंधियार तुरत भागेगा निर्लज
अब तो इतना देख कि आने को है सूरज ||
+ रमेशराज +

————————————–
— कुंडलिया छंद —
—————————————–
कमरे में जो दृश्य हैं, ला न मंच पर यार
कमरे ही अच्छा लगे आलिंगन-सत्कार |
आलिंगन-सत्कार, सड़क पर प्यार न होता
सिर्फ रेत के बीच नहाना, कैसा गोता ?
माइक पकड़े दीख न तू रति के पचड़े में
अरे चुटकुलेबाज किलक केवल कमरे में ||
+ रमेशराज +

——————————–
— कुंडलिया छंद —
———————————-
हत्यारे प्यारे लगें , भायें तस्कर – चोर
क्यों तू उसको चोट दे , जो परिवर्तन – ओर |
जो परिवर्तन – ओर , वाण सब उन पर तेरे
क्यों भाते हैं बोल , तुझे ये तम के घेरे ?
बाल्मीकि का वंश , लजा मत ऐसे प्यारे
चला उन्हीं पर तीर , असल में जो हत्यारे ||
+ रमेशराज +

———————————–
— कुंडलिया छंद —
————————————-
कहे ‘ अराजक ‘ क्यों उसे , जो चाहे बदलाव
करने दे यों ही उसे इस सिस्टम के घाव |
इस सिस्टम के घाव , अराजक वो है प्यारे
हिंसा को फैलाये जो सद्भाव संहारे,
तज शोषण – अपराध करे मत झूठी बक-बक
तूने ‘तिलक’ , ‘सुभाष’ , ‘भगत ‘ भी कहे अराजक || ‘
+ रमेशराज +
————————————————————-
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-२०२००१
मो.-९६३४५५१६३०

1 Like · 1 Comment · 696 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
■ सरोकार-
■ सरोकार-
*Author प्रणय प्रभात*
कितना प्यार
कितना प्यार
Swami Ganganiya
भोर
भोर
Omee Bhargava
"मैं" का मैदान बहुत विस्तृत होता है , जिसमें अहम की ऊँची चार
Seema Verma
वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, द्वितीय सर्ग में राम द्वा
वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, द्वितीय सर्ग में राम द्वा
Rohit Kumar
अब सुनता कौन है
अब सुनता कौन है
जगदीश लववंशी
"आत्मा"
Dr. Kishan tandon kranti
अगर कोई आपको मोहरा बना कर,अपना उल्लू सीधा कर रहा है तो समझ ल
अगर कोई आपको मोहरा बना कर,अपना उल्लू सीधा कर रहा है तो समझ ल
विमला महरिया मौज
" करवा चौथ वाली मेहंदी "
Dr Meenu Poonia
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
Er.Navaneet R Shandily
औरत की हँसी
औरत की हँसी
Dr MusafiR BaithA
मैत्री//
मैत्री//
Madhavi Srivastava
वृक्षों के उपकार....
वृक्षों के उपकार....
डॉ.सीमा अग्रवाल
इश्क का इंसाफ़।
इश्क का इंसाफ़।
Taj Mohammad
*हजारों साल से लेकिन,नई हर बार होली है 【मुक्तक 】*
*हजारों साल से लेकिन,नई हर बार होली है 【मुक्तक 】*
Ravi Prakash
*मेरी इच्छा*
*मेरी इच्छा*
Dushyant Kumar
अजब तमाशा जिन्दगी,
अजब तमाशा जिन्दगी,
sushil sarna
बचपन
बचपन
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
आज कुछ अजनबी सा अपना वजूद लगता हैं,
आज कुछ अजनबी सा अपना वजूद लगता हैं,
Jay Dewangan
आहत न हो कोई
आहत न हो कोई
Dr fauzia Naseem shad
दरदू
दरदू
Neeraj Agarwal
वरदान
वरदान
पंकज कुमार कर्ण
ये बात पूछनी है - हरवंश हृदय....🖋️
ये बात पूछनी है - हरवंश हृदय....🖋️
हरवंश हृदय
मीठी-मीठी माँ / (नवगीत)
मीठी-मीठी माँ / (नवगीत)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
$úDhÁ MãÚ₹Yá
इल्जाम
इल्जाम
Vandna thakur
23/62.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/62.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
दीप की अभिलाषा।
दीप की अभिलाषा।
Kuldeep mishra (KD)
Loading...