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17 Sep 2024 · 2 min read

पितृ पक्ष व् तर्पण।

पितृ पक्ष व् तर्पण।
ग्रन्थो में लिखा गया है कि घर में अमावस्या पितृ पक्ष विशेष तिथि तथा श्राद के दिन तिल से तर्पण करें परन्तु अन्य दिन घर में तिल से तर्पण ना करें।
तर्पण का जल सूर्योदय से आधे पहर तक अमृत ,* एक पहर तक मधु *डेढ़ पहर तक दूध और साढ़े तीन पहर तक जल के रूप में पितरों को प्राप्त होता है इसके उपरांत का दिया हुआ जल राक्षस को प्राप्त होता है।
कुशा के अग्र भाग से देवताओं को।
मध्य भाग में मनुष्यो का और मूल भाग से पितरों का तर्पण होता है।
पूर्वा भिमुख बैठकर आचमन करें और कुशाओं की पवित्री दाहिनी तथा बाएं हाथ की अनामिका की जड़ में धारण करें।
तीन कुशाओं को सीधी बटकर ग्रन्थि लगाकर कुशाओं को अग्र भाग पूर्व में रखते हुए दाहिने हाथ में जलादि लेकर संकल्प नाम पर्यन्त बोलकर ।
“श्रुति स्मृति पुराणोकत फल प्राप्त यर्थम
देवर्षि मनुष्य पितृ त्रपनम करिष्ये ‘
कहकर जलादि छोड़ देवे।
“ब्रम्हादयः सुराः सर्वे ऋषयः जनकादयः
आगच्छन्तु महाभागा ब्रम्हान्दोत्रर वर्तिनः ‘
1 देव तर्पण ।
2 ऋषि तर्पण।
3 दिव्य पितृ तर्पण।
4 यम तर्पण।
5 पितृ तर्पण।
पितृ तर्पण के लिए आवाहन के लिये अंजलि दें।
ॐ आगच्छन्तु में पितर इम्म गृहन्तपो ज्जलिम।
वेद मन्त्र का उच्चारण ना कर सके तो केवल अध अमुक गोत्र (पराशर गोत्र )से बोलकर प्रयेक को 3 -3 तीन -तीन अंजलियाँ दे।
अमुक शब्द पितरो की उपाधि के लिए –
संकल्प-स्नान दान पूजन आदि के प्रारंभ में संकल्प करना जरूरी होता है।
दाएं हाथ में केवल जल या जल पुष्प आदि लें।
संकल्प में अमुक के स्थान पर उसके बाद जो शब्द है उसका विशेष नाम पंचाग आदि में देखकर बोलना चाहिए।
ब्राम्हण नाम के अंत में “व्यास ‘ ब्राम्हण कहें।
श्राद पितरो के तर्पण में भी इस प्रकार से बोले _★
यजमान गोत्र का नाम “पाराशर गोत्र ‘मम
के स्थान पर मम यजमानस्य और अंत में
“करिष्ये ‘की जगह पर करिष्यामि कहें।
पितृ तर्पण पहले पिता को, दादाजी को ,दादी जी को ,परदादी जी को ,नांना जी को नांनी जी को परनानी जी को वृद्ध जनों को तिलांजलि दे।
स्वर्गीय जनों को सम्बन्धियो का गोत्र , सम्बन्ध नाम उच्चारण करके 3-3तीन -तीन अंजलियाँ देवे।
गुरु ,दादा ,परदादा ,ताऊ , चाचा , भ्राता, पुत्र,ससुर, मामा, और फूफा आदि उन लोगों की पत्नियाँ ,अपनी पत्नी, बहन और पुत्रियों को अंजलियाँ दे।
पश्चात पूर्वरामुख होकर जनेऊ व् अंगोछे को बाएँ कंधे पर रखकर देवतीर्थ मंत्र से जलधारा छोड़े।
साकल्य हवन सामग्री –
तिल से आधे चावल।
चाँवल से आधे भाग जौं।
जौं से आधे भाग चीनी (शक्कर )
और घी तथा मेवा मिलाकर साकल्य बनायें।
अमावस्या के दिन पंडितों को भोजन कराकर यथासंभव दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं और इससे पितृ प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हुए घर से विदाई लेते हैं।
***शशिकला व्यास***
राधैय राधैय जय श्री कृष्णा

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