पिता
पिताजी, कैसे कह दूँ ,
कैसे बता दूँ दुनिया को,
आपके लिए मैं क्या थी..?
आपकी सोन चिरैया मैं,
सीने लगाये जिसको,
दिखायी दुनिया आपने,
दिया था आसमान,
भरने को अपनी उड़ान।
हाँ; पिताजी, आप ही तो थे,
मेरी वो स्वप्निल दुनिया,
आपकी स्नेही, विश्वसनीय दृष्टि,
चहुँ ओर से सुरक्षित।
और हाँ; पिताजी, मेरी उड़ान,
मेरा खुला आसमान,
मेरे असंख्य स्वप्न, संभावनाएँ,
आप ही तो थे।
सोचती हूँ ; क्या आप थे..?
नहीं; आप हैं, रहेंगे,
मेरी प्रेरणा, मेरे स्वप्न,
मेरी उड़ान व आसमान बनकर।
हाँ; पिता दुनिया से जाते नहीं,
बने रहते हैं अपनी सन्तान में,
आप भी हैं; नहीं, आप ही हैं मुझमें,
कल भी, आज भी, हमेशा.!!
रचनाकार :- कंचन खन्ना, मुरादाबाद,
(उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)
दिनांक :- १७/०४/२०२२.