पिता
पिता माता का श्रृंगार है, सुहाग है
उनकी संतानें कुल का चिराग है।
हो चाहे अभाव, न महसूस होने दे
खुद पी ले आंसू , न किसी को रोने दे।
पिता हर घर की आन बान शान है
उनकी हर डांट डपट में एक ज्ञान है।
पिता जग के अनुभवों की खान है
अच्छे बुरे का देते ज्ञान, वे महान हैं।
पिता ज्यों वटवृक्ष की घनी छाया है।
उनके रहते कभी दुःख नहीं आया है।
सबको सद्गुणों का पाठ पढ़ाया है।
इसलिए प्रथम गुरु का नाम पाया है।
पिता नाम त्याग का, बलिदान का।
वे ही कारण हैं कुल के उत्थान का।
बच्चों की जान हैं, उनके अरमान हैं
उनके लिए वे खिलौने की दुकान हैं।
मजबूत इरादे उनकी पूरी करे है वादे
होती नहीं चुनौतियां उन्हें कभी डिगा दे
उनका आशीर्वचन ही मानो वरदान है।
महामानव के रूप में वे ही भगवान हैं।
भागीरथ प्रसाद
पुणे, महाराष्ट्र