पिता
आधार छंद-विधाता
1222 1222 ,1222 1222
पिता के रूप में सब देवता घर में तुम्हारे हैं ।
मनुज पहचान लो इनको प्रभु भू पर पधारे हैं।
शिकन को देख माथे पर रहीं चिंता जिन्हें तेरी,
खुशी से भर दिया जीवन हँसी देकर सवारें हैं।
जले खुद धूप में हरदम घना छाया बने तेरा।,
लुटा कर के स्वयं को जो सभी सपने सकारें हैं।
दबे थे बोझ से इतना स्वयं की त्याग दी इच्छा ,
सदा संतान के खातिर कठिन जीवन गुजारे है।
हरे विपदा सदा तेरी कवच बन कर रहे तेरा,
करो आदर मनुज इनका खुशी के ये पिटारे हैं।
भरी उम्मीद आँखों में भरा विश्वास जो दिल में,
मिला आशीष जब इनका कदम में चाँद तारे हैं ।
बुढ़ापा ने किया जड़जड़ कमर को तोड़ डाला है,
कभी तेरा सहारा थे अभी तेरे सहारे हैं।
करो सत्कार सेवा तुम बनो इनका सहारा तुम,
करो अपमान मत इनका तुम्हें जब भी पुकारे हैं।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली