पिता
वो अभय वरदान है,
उनके होते मुझे डर किसका।
यह मेरा अभिमान है
कि मैं हूं एक अंश उनका।
भावनाएं छुपाकर जो प्रेम करें,
बिन बोले मेरी सारी विपत्ति हरे,
सह कर गर्मी, वर्षा, शीत ,
हम सब का वह पोषण करें।
वो कर देते हैं दिन रात एक,
देखने को एक मुस्कान हमारी,
हे पिता! वंदन तुम्हें,
धन्य हूं बन कर सुता तुम्हारी।
लक्ष्मी वर्मा “प्रतीक्षा ”
खरियार रोड, ओड़िशा।