पिता संघर्ष की मूरत
पिता संघर्ष की मूरत
तुम्हें हँसाने की खातिर, कितनी बार समझौता किया ,
तुम्हें पढ़ाने की खातिर, बैंक बैलेंस भी खाली किया !!
नौकरी दिलवाने की खातिर,
कितना ही संघर्ष किया !!
मकान बनाने की खातिर बैंकों से कितना कर्ज लिया !!
दुख छुपाने की खातिर,
जाने कितने नाटक किए !!
माँ तो फिर भी एहसास दिलाती है कि वह तुम्हें कितना चाहती है !!
पर पिता ने कितने दर्द सहे, वे उन्होंने तुम्हें कब कहे !!
पिता के घर में पली बेटी,शादी के बाद हो गई पराई,
अब वह पिता के हक से नहीं, पति के हुकुम से है मायके आई !!
आते ही करने लगी ससुराल की बढ़ाई,
आज शॉपिंग ज्यादा करने के कारण पिता से अच्छे से मिल भी नहीं पाई !!
दामाद को खुश रखने की खातिर न जाने कहाँ-कहाँ से जमापूंजी शादी पर है लुटाई !!
तुम्हें नए कपड़े दिलवाने की खातिर,
न जाने पिता ने कितनी बार अपनी पुरानी कमीज है सिलवाई !!
तुम्हें बसाने की खातिर न जाने, उस पिता ने कितनी बार अपनी बहू की है डांट खाई।
फिर भी पूछते हैं बच्चें कि पिता ने जीवन भर की ही क्या कमाई ???
बुरी औलादें तो उन्हें मरने के लिए वृध्दआश्रम छोड़ आई !!
पिता संघर्ष की मूरत है, यह बात केवल अच्छी औलादें ही है जान पाई !!