पिता लिख रहा हूं
हर शब्द में ही मुझे पिता का अस्तित्व दिख रहा है
ये कौन कलमकार है?
ये कौन लिख रहा है?
ये कौन लिख रहा है?
तुम सुनाते हो पिता की अमर कथा या लिखते हो पिता की गाथा
तुम्हारी कविता ने नि: संदेह चूमा है पिता का माथा
तुम्हारी पितृ भावना का स्वाद रातों रात बिक रहा है
ये कौन कलमकार है?
ये कौन लिख रहा है?
ये कौन लिख रहा है?
तुम करते हो पिता का गुणगान या चला रखा है पिता के लिए अथक अभियान
तुम्हारी कविता ने स्थापित किया है ये स्वर्णिम कीर्तिमान
तुम्हारी आस्था का अलख प्रत्येक के हृदय में जग रहा है
ये कौन कलमकार है?
ये कौन लिख रहा है?
ये कौन लिख रहा है?
तुम बताते हो पिता का सम्पूर्ण अध्याय या पिता है जीवन की जीत का पर्याय
तुम्हारी कविता ने किया है पूर्ण यह स्वध्याय
तुम्हारी श्रद्धा का पुष्प हर उद्यान में उग रहा है
ये कौन कलमकार है?
ये कौन लिख रहा है?
ये कौन लिख रहा है?
तुम परिभाषित करते हो पिता का वंदन या लगाया है तुमने पिता के मस्तक पर चंदन
तुम्हारी कविता में सध रहा है पिता का असीम अभिनंदन
तुम्हारी अंतर्रात्मा की वाणी संसार सजग होकर सुन रहा है
ये कौन कलमकार है?
ये कौन लिख रहा है?
ये कौन लिख रहा है?
तुम लिखते हो पिता की अनंत अभिलाषा या मुखर होकर दी है पिता की परिभाषा
तुम्हारी कविता ने जगाया है पिता के प्रति अगाध आशा
“आदित्य”तुम्हारी पंक्तियों में पिता के महिमा मंडन का सुमन बिछ रहा है
ये कौन कलमकार है?
ये कौन लिख रहा है?
ये कौन लिख रहा है?
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.