पिता – नीम की छाँव सा – डी के निवातिया
पिता एक विश्वास
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घर आँगन में नीम की छाँव सा,
जीवन सागर में बहती नाव सा,
किसान बन घर परिवार सींचता,
इंजन बन घर की गाडी खींचता,
बच्चो का जीवन गढ़ता है ऐसे,
कुम्हार मिट्टी के बर्तन को जैसे,
कर्म के हवन कुंड में खुद तपता,
परिवार कुशलता के मंत्र जपता,
जिम्मेदारियों के रथ का सारथी,
निभाता है बनकर इक महारथी,
पिता, पुत्र, पति के फर्ज निभाता,
बाप बनकर बेटे का कर्ज चुकाता,
विवशता को अपनी ढाल बनाता,
टूटकर भी खुद को टूटा न दर्शाता,
जो परिवार का कुशल शिल्पकार,
है अविस्मरणीय जिसके उपकार,
वो पिता एक उम्मीद, एक आस,
एक हिम्मत और एक विश्वास !!
!
स्वरचित मौलिक
नाम : डी के निवातिया
स्थान : मेरठ, उत्तर प्रदेश, (भारत)