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17 Apr 2022 · 1 min read

पिता-दिवस

पिता-दिवस
खुदा ने मुझको सजा ये दी है
पिता-दिवस में पिता नहीं है
हमारी उर की व्यथा यही है
कहाँ पर होंगे पता नहीं है
बरगद की छाया सी स्नेह
सदा बरसता उनका नेह
उनकी करुणा जब बहती थी
ये दुनिया सुन्दर दिखती थी
उनके बिना सूना घर सारा
हर कोने में उन्हें पुकारा
विधि ने ऐसी नियम बनाई
झेलनी पड़ती विषम जुदाई
अपने हो जाते है पराये
ढूंढते रहते उनके साये
पीड़ित भावना थकित चेतना
किससे कहूँ मै व्यथित वेदना
सब कुछ है अपने जीवन में
फिर भी कमी सी रहती मन में
अपनों से न कोई जुदा हो
चाहे कितनी बड़ी खता हो
जहाँ कहीं हो उनके चरण
हम करते हैं उन्हें नमन

भारती दास ✍️
गांधी नगर (गुजरात)

9 Likes · 18 Comments · 326 Views
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