पिता का साया हूँ
मै तो इस धरा पर माँ पिता से आया हूँ
हाँ जी मै हूबहू अपने पिता का साया हूँ
उम्मीद ,सपने ना टूटने देते ऐसे होते पिता
इसलिए मै पिता को ही, ईश्वर बनाया हूँ
दुनियादारी की बातों से, अवगत कराया
तब जाकर, लोगो को मै, समझ पाया हूँ
नज़रों से नजरे मिलाके, चलना सिखाते
इसलिए ईश,गुरु,सखा आपको बनाया हूँ
कालचक्र से ख़ुशी गयी तो दुःख आयेगा
पिता के साये में चल ख़ुशी से लहराया हूँ
हौसले बुलंद कर अग्र बढ़ने की प्रेरणा दे
मेरे पिता को अपनी कविता में दर्शाया हूँ
कड़ी परिश्रम करते देखा अपने पिता को
अब सुकूँ के दो पल देकर थोड़ा हर्षाया हूँ
जोड़ रखे है दोनों के नामो को कविता में
प्रेमयाद कुमार नवीन न्या नाम बनाया हूँ
औरो का नहीं पता हमे, हम अपने पिता
को इस कविता में पूरा हूबहू दर्शाया हूँ
स्वरचित/
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)