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23 May 2022 · 1 min read

पिता का आशीष

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गुजरे दिन याद आते है आज भी मुझे।
पिता की याद आती है आज भी मुझे।।१।।

बचपना बिता है माता-पिता के संग में।
खुब मौज-मस्ती की- दोस्तों के संग में।।२।।

मैं पढ़ा-लिखा हूॅं- पिता के संरक्षण में।
कभी लापहरवाही- ना की शिक्षण में।।३।।

ईश्वर की कृपा, पितृ का आशीष पाया।
पढ़-लिखकर! ‘सरकारी-नौकरी’ पाया।।४।।

पिता का आशीष रहा है सदा मुझपर।
पिता नहीं है- उनका साया है मुझपर।।५।।
**********************************
रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल===
====*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*=====
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