पापा , तुम बिन जीवन रीता है
अब कौन सा रंग बचा साथी
संबंधों की सब हरियाली सूखी
जीवन हो जैसे इक बलि वेदी
गलना ,ढहना,तिल -तिल मरना
जीवन न पापा,तुम बिन जीवन रीता है
जिस दिन से तुम छोड़ गए हमको
पल -छिन दुख ने दहन किया हमको
मन में बैठ गया तब से इक संताप
जीवन में अंधेरा यूँ गया था व्याप्त
कोई राह न अब तक सूझी हमको
पापा ,तुम बिन जीवन ….
जैसे चिता पर दहक रहा हो जीवन
विलगित होता रहता है तन और मन
यूँ किया था मुझे पल्लवित -पोषित
तुम्हारे लाड से मैं रहती थी मुदित
उस लोक तक पहुँचती है क्या मेरी चीख
पापा तुम बिन …
जीवन पथ पर गिरती -पड़ती ,लथपथ रहती
जैसे जेहन में हरदम छाई रहती हो पस्ती
ताड़ में हैं बैठे शिकारी ताक लगाए
कब गिध्दों के पंजे में चिरैया आये
और बारी -बारी से सब करें घात
पापा तुम बिन …
तुम्हें छीन के नियति ने फेंका पासा
बाकी न रही मन में कोई आशा
घर ,खेत ,घेर ,खलिहान -आंगन, बगीचा
जिसे खून -पसीने से था तुमने सींचा
वहाँ मरघट सा व्याप्त है सन्नाटा
पापा तुम बिन ,,,
जीवन पथ पर नया क्या संधान करूँ
किस लिए जियूँ ,क्या निर्माण करूँ
जब तुम ही नहीं तो सब कुछ निष्प्राण
ज्यों चीर कलेजा लगा हो कोई बाण
अब दहन करूँ खुद को या नव जीवन निर्माण
पापा तुम बिन …….
तुम आसमान से जरा देखो तो पापा
मैंने दुख अपना न अब तक बांटा
हुई सुख की सब अनुभूति नदारद
ये नियति का है कैसा क्रूर प्रारब्ध
मर सके नहीं तो फिर तो जीना है
पापा तुम बिन जीवन रीता है
समाप्त