“पापा की लाडली ” क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं
सच-सच बताना छिपाना न दादाजी,
पापा जी के बारे में बताना न दादाजी,
क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं।
मम्मी से पूछा, दादी से पूछा,
चाचा और चाची से पूछा,
बुआ से पूछा, फूफा से पूछा,
नाना, नानी, मामा,मामी
सबही बनाते हैं बहाना दादा जी।
क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं।
जब भी आते बुलाते ही मुझे थे,
आते ही गोदी में बिठाते ही मुझे थे,
जो कुछ लाते पहले खिलाते मुझे थे,
साइकिल पर बिठाके घुमाते मुझे थे,
ये सब हुए गुजरा है जमाना दादा जी।
क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं।
मेला हाट मुझे ले जाते थे,
कंधे पे बिठाके मेला दिखाते थे,
नई फ्राक और नये जूते खरीदते थे,
जो कुछ मांगू मुझे दिलवाते थे,
अब तो पड़ता है आंसू बहाना दादा जी।
क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं।
पापा की हूं मैं प्यारी लली,
नन्ही परी फूल सी कली,
रोज ताकती हूं मैं उनकी गली,
फिर भी मुझे है निराशा मिली,
घर होगा कब उनका आना दादाजी।
क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं।
सच-सच बताना छिपाना न दादाजी,
पापा जी के बारे में बताना न दादाजी,
क्या उन्हें याद मेरी आती नहीं।
रचनाकार
रामनरेश
ओमनगर,बछरावां
रायबरेली, उत्तर प्रदेश, भारत