पापा की तो बस यही परिभाषा हैं
पापा की तो बस यही परिभाषा हैं
मरते दम तक साथ की आशा हैं”
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावश्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा हैं।श्राद्ध कर्म के रूप में हम अपनी श्रद्धांजलि अपने पितरों को अर्पित करते है।आज चतुर्थी तिथि है।आज ही मेरे जीवनदायक मेरे पापा की श्राद्ध तिथि हैं। पापा मैं प्रतिवर्ष की भाँति ही आज आपका श्राद्ध कर रही हूँ ।आप आज जिस रूप में भी हैं मेरी श्रद्धा ग्रहण करना।मैने तो सभी मिथ को तोड़ आगे बढ़कर कि बेटियां श्राद्ध का हक नही रखती को धता बता अपनी नई परम्परा को जन्म दिया। पापा आपको आपकी बेटी का अश्रुपूरित नमन ।पापा आपका साया तो उठ गया सिर से पर जानती हूँ कि परोक्ष रूप से साया बनकर आप आशीर्वाद रूप में हमेशा मेरे साथ है।
आपकी बिटिया