पान की गुमटी
शहर की गली के नुक्कड़ पर उस पान वाले की गुमटी थी । उस पर लोगों का जमावड़ा लगा रहता था । जिसमें विद्यार्थी, वकील ,पत्रकार , राजनीति से जुड़े और विभिन्न व्यवसाय में लगे लोग शामिल रहते थे । ज्ञान चर्चा से लेकर राजनीति कानून और अन्य विषयों पर चर्चाएं होती रहती थी। पान वाले का धंधा खूब जोरों से चलता था कुछ लोगों का प्रतिदिन का नियम था पान खाना और चर्चा करना जिसमें हर वर्ग का व्यक्ति सम्मिलित होता था। ताजा खबरें पहले उस पान वाले की दुकान पर मिलती थी कि फलाँ व्यक्ति की फलाँ व्यक्ति से लड़ाई हो गई है। फलाँ जगह पुलिस ने छापा मारा है और फलाँ को गिरफ्तार कर लिया है । इस तरह सनसनीखेज घटनाओं का उल्लेख होता रहता था । पान वाला भी अपना विश्लेषण उन घटनाओं में दिया करता था । वक्त गुजरता गया पानवाला बदस्तूर अपना धंधा वहां चलाता रहा । मैं भी नौकरी के सिलसिले में उस शहर से ट्रांसफर होकर दूसरे शहर में आ गया और फिर कई शहरों में नौकरी के सिलसिले में रहा । करीब 19 साल बाद जब मैं उस शहर पहुंचा तो मेरी इच्छा हुई कि उस पान वाले की गुमटी पर पान खाने जाऊँ। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे देखकर आश्चर्य हुआ कि अभी भी वहां का पान की गुमटी मौजूद थी । उस पर बैठा एक लड़का पान लगा रहा था । मैंने उससे पूछा कि पहले जो पान लगाते थे वो कहाँ हैं । उसने बताया कि वे मेरे पिताजी थे जिनकी कुछ समय पहले सड़क दुर्घटना में मौत हो चुकी थी। उन्होंने अपनी मेहनत से कमाई कर एक होटल खड़ा किया जो अच्छा चल रहा है। परंतु उन्होंने मुझसे वचन लिया था कि मैं इस गुमटी को चलाऊंँ , और इस धंधे को उनकी सौगात मानकर कायम रखूँ । मैं उस पान वाले के बेटे की बात सुनकर अचंभित् हुआ, सोचा आज भी अपने छोटे से छोटे धंधे को लोग सम्मान देते हैं। और उसको कायम रखने में गर्व महसूस करते हैं । जितना भी व्यापार में उन्नति कर लें पर वे अपने मूल व्यापार को दिल से लगा कर रखते हैं । मेरा सर उस पान वाले की श्रृद्धा में झुक गया।