पानी की दुकान
जिस देश में दूध की नदियां बहती थी, वही पानी के लिए दर-दर भटक रहा है। उसकी हालत बिन पानी के मछली तड़पती है जैसी हो गई है। पानी के लिए हाय तौबा हाय तौबा मच रही है। कहीं लोग लड़ रहे हैं कहीं दौड रहे हैं। ग्रीष्म काल में क़ोतुहल मच रहा है।
जीव जंतु पानी के बगैर नहीं रह सकता। मनुष्य कितना ही विवेकशील हो जाए तर्कशील, आत्मबल, कितनी ही उन्नति के शिखर पर पहुंचे। उसे प्रकृति के सानिध्य में रहना पड़ेगा। पानी का लेवल दिनों दिन घट रहा है।
मनुष्य ने अपनी पूर्ति के लिए विकल्प जरूर खोज लिए, पेयजल के लिए पानी की दुकान खोल रखी है। पानी का व्यवसायीकरण किया जा रहा है। फिर भी प्रकृति पर निर्भर रहेगा।
पानी के लिए हमारी सरकार समय-समय पर पानी बचाओ जैसे अभियान चलाता है। तलाव निर्माण, मेड
बंधन, वृक्षारोपण, नए नए आयाम लाती हैं। यह सब बारिश के पानी पर निर्भर है। यदि लोगों में जागरूकता हो तो कुछ हद तक राहत मिल सकती ।
प्रकृति का दोहन वे हताश हो रहा है। बनू की उपेक्षा, वनों की अंधाधुंध कटाई, आदि आदि कारण है। जनसंख्या की वृद्धि भी एक कारण है।
कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि हो रही है। मानव प्रदूषण की चपेट में आ गया है, जैसे-भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि।
इन प्रदूषण के कारण हमारी धरा, और जनसंख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
हमें प्रकृति से संतुलन बनाए रखना होगा।भूमि प्रदूषण से बचने के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाना पड़ेगा। और संरक्षण करना पड़ेगा। जल प्रदूषण से बचाव के लिए हमारी फसलों में कम केमिकल वाली दवाइयों का उपयोग करना चाहिए। ताकि उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में ना तब लीद हो। वायु प्रदूषण से बचने के लिए हमें वाहनों का उपयोग कम मात्रा में करना चाहिए। कल कारखानों से निकलता धुआं, गैस, का उपयोग कम करना चाहिए। जिससे पर्यावरण की रक्षा हो सके। यदि हम जल्द अचेतन अवस्था से नहीं जागे तो वह दिन दूर नहीं है जब समस्त प्राणी काल के गाल में समा जाएंगे। फतेह जल एक बहुमूल्य पदार्थ है। इसको बचा कर रखना हमारी जिम्मेदारी है। नहीं तो”
पानी की दुकान”बंद हो जावेगी। और मानव का जीवन अंधकार में पड़ जाएगा।
लेखक_ नारायण अहिरवार”अंशु कवि”
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश