पाती प्रेम की
शीर्षक: पाती प्रेम की
आ जाते हो आज भी याद मुझे तुम
न जाने क्यो चले गए यूँ मुझे तन्हा छोड़
आ जाती हैं वो घड़ी याद आज भी
जब लिखती थी हर दिन मैं तुझे
पाती प्रेम की…
क्यो होता हैं ऐसा जो होता दिल मे बसा
अक्सर छोड़ यूँ बीच राह चला जाता हैं
पर ये पाती ही सहारा बन जाती हैं
वो बीती बातों को याद दिलाती हैं
पाती प्रेम की…
लिखती थी हर लम्हा लम्हा
अपने दिल की बात को
खोल डालती थी तेरे सामने
मन के सब उदगार याद हैं आज भी
पाती प्रेम की…
यही है आज तेरी यादों का सहारा
न जाने क्यो पीड़ा हरी हो जाती हैं
आज भी निकाल पढ़ लेती हूँ
याद कर दुखी भी हो लेती हूँ वही
पाती प्रेम की…
आ लौट आ ना एक बार फिर से
बनाये वही फ़साना अपना
तू लिखना पाती अपने मन के भाव की
मैं भी दिल खोल दूँ एक बार फिर लिखे
पाती प्रेम की….
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद