पागल जैसा पागल क्यों है
पागल जैसा पागल क्यों है
मन इतना भी चंचल क्यों है
भरा भरा है घर तो पूरा
खाली माँ का आँचल क्यों है
हरियाली है अलसायी सी
थका थका सा जंगल क्यों है
घोर निराशा में डूबी सी
झरने की ये कल कल क्यों है
रोज नई बीमारी आकर
हमें सताती पल पल क्यों है
साँप मरे दो चार कहीं पर
बदहवास ये संदल क्यों है