पाखंडी
कर कर के पाप,
भरे पाप के मटके ,
खूब संग्रह बनाएं।
ना ईश्वर का डर ,
ना मौत का ही डर ,
निरंकुश होते जाए ।
ना किसी की पीड़ा और
ना दर्द और संताप का
आभास वो पत्थर कहलाएं।
साधु महात्माओं की सेवा कर,
मंदिरों में चढ़ावे चढ़ाकर ,
स्वयं को धर्मात्मा दर्शाएं ।
ज्ञान ध्यान और संस्कारों ,
की जैसी करें बातें ।
उनके मुंह पर जचती नहीं ,
ऐसी महान बातें ।
ऐसे लोग पाखंडी कहलाएं ।
उन्हें क्या नहीं पता ,
ऐसे अशुद्ध आचरण का ,
अंजाम क्या होगा?
वो कहते है जो होगा देखा जाएगा ।
अभी तो जीवन के मजे लेते जाएं ।
अभी तो मजे ले लो पापियों ,
कभी तो तुम्हारा अंत होगा ।
जब ईश्वर स्वयं तुम्हारा संहार करने,
धरती पर अवतार पुनः लेगा ।
हे प्रभु !! कृपया कर शीघ्र आएं ।