पाक मुहोबत
उल्फत में मिलना जरूरी नहीं होता ,
खतों से भी बात हो जाया करती है।
मुहोबत में तुम्हारी दम हो अगर तो ,
आह को आह खींच ही ले आती है ।
दिल को दिल की राह तो बनने दो ,
धड़कनों की सदा तो खुद पहुंचती है।
मुद्दतों बाद जो राहों में मुलाकात हो ,
उस मुलाकात में दीवानगी होती है।
तुम जहां भी रहो कोई फर्क नहीं पड़ता,
तुम्हारी सलामती की खबर हवा दे जाती है।
नदी के दो किनारों की तरह बहते हुए ,
जिंदगियां कभी न कभी मिल ही जाती है।
और अगर जिंदगियां न भी मिलें तो क्या ,
मौत के बाद रूहें तो जन्नत में मिलती है।
“अनु” को यकीन है अपने रब्बे इलाही पर ,
उसकी रहमत चाहने वालों पर सदा रहती है।