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21 Jan 2022 · 1 min read

पाक मुहोबत

उल्फत में मिलना जरूरी नहीं होता ,
खतों से भी बात हो जाया करती है।

मुहोबत में तुम्हारी दम हो अगर तो ,
आह को आह खींच ही ले आती है ।

दिल को दिल की राह तो बनने दो ,
धड़कनों की सदा तो खुद पहुंचती है।

मुद्दतों बाद जो राहों में मुलाकात हो ,
उस मुलाकात में दीवानगी होती है।

तुम जहां भी रहो कोई फर्क नहीं पड़ता,
तुम्हारी सलामती की खबर हवा दे जाती है।

नदी के दो किनारों की तरह बहते हुए ,
जिंदगियां कभी न कभी मिल ही जाती है।

और अगर जिंदगियां न भी मिलें तो क्या ,
मौत के बाद रूहें तो जन्नत में मिलती है।

“अनु” को यकीन है अपने रब्बे इलाही पर ,
उसकी रहमत चाहने वालों पर सदा रहती है।

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