पाक-चाहत
कुछ ऐसे होते हैं ,जो दिलो जाँ से
अहदे वफ़ा निभाते हैं ,
कुछ ऐसे होते हैं ,जो भी मरास़िम थे
उसे भूल जाते हैं ,
दौर -ए – इश्क़ में जज़्बातों का ज़ोर रहता है ,
ग़र्दिश -ए – वक़्त में हालातों का ज़ोर चलता है ,
ज़माने से बग़ावत करने का क़स्द
हर किसी आश़िक में नहीं होता ,
इश्क़ में फ़ना होने का जज़्बा
हर किसी में नहीं होता ,
तर्क- ए -वफ़ा के किस्से
सुबह -ओ – शाम होते हैं ,
फरेब -ए – इश्क़ के फ़साने
सरेआम होते हैं ,
पाक-चाहत हर किसी को
हास़िल नहीं होती है ,
ये वो ख़ुदा की नेमत है ,
जो हमेशा खास होती है।