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1 Jun 2019 · 1 min read

पांच मुक्तक

* मुक्तक- १ *
~
स्वार्थवश बहता मनुज जलधार के अनुकूल हैं।
पर समझ पाता नहीं सबसे बड़ी यह भूल है।
पार जाने के लिए दृढ़ शक्ति मन में हो भरी।
लक्ष्य साधन का यही तो मंत्र अनुपम मूल है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~

* मुक्तक- २ *
~
कुटिलता पर मृदुलता को ओढ़ना अच्छा नहीं।
छल कपट से जिन्दगी को तोड़ना अच्छा नहीं।
खूबसूरत है समय इसको बिताओ प्यार से।
हो अहित जिसमें जरा भी सोचना अच्छा नहीं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~

* मुक्तक- ३ *
~
कुछ प्यार भरी यादें, हैं साथ सदा रहती।
जीवन भर सुख दुख में, संवाद किया करती।
जाने अनजाने पल, अनुभूति सुखद लेकर।
जब जब भी हैं आते, बन आँसू है बहती।
~~~~~~~~~~~~~~~~~

* मुक्तक- ४ *
~
जिन्दगी में है जरूरी मौन की भाषा समझना।
आचरण भी चाहिए मन से उसी अनुरूप करना।
हर कदम पर मुश्किलें आसान भी होती रहेंगी।
साथ ही होगा सरल सुख स्नेह के घन का बरसना।
~~~~~~~~~~~~~~~~~

* मुक्तक- ५ *
~
खिल रहे फूल हैं मुस्कुराओ जरा हर तरफ छा रही है खुशी की लहर।
रश्मियां सूर्य की स्वर्ण आभा लिए देखिए अब धरा पर रही हैं बिखर।
हो गया दृश्य है कल्पना से परे दिव्य सी स्वप्नमय लालिमा से भरा।
स्नेह की भावना हो रही है प्रबल सामने ज्यों सभी कुछ गया है ठहर।

~~~~~~~~~~~~~~~~~
– सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)

Language: Hindi
448 Views
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