“ पहिल सार्वजनिक भाषण ”
( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल”
=====================
ओना एक्सटेपोर लेक्चर क अभ्यास बड़का शीशा (आईना)क सोझा मे करैत रहि ! मॉर्निंग वॉक लेल नित्य प्रातः कतो सुनसान स्थान पर कोनो गाछक सोझा मे ठाड़ भ 3 मिनट क लेल अंग्रेजी मे लेक्चर दैत रहि !
अंग्रेजी न्यूजपेपर के जोर -जोर सँ उच्चारण करि पढ़इत छलहूँ ! हमर श्रोता हमर पुत्री आ हमर दूनू पुत्र रहैत छलाह ! 2 मिनट पर चेतावनी घंटी आ 3 मिनट पर “ स्टॉप “ कहबाक अधिकार हुनका देने छलियनि ! सब दिन नव -नव विषय केँ चुनैत रहैत छलहूँ ! पत्र अंग्रेजी मे लिखनाई ,बीबीसी हिन्दी केँ सब दिन सुनि -सुनि संगे सँग अंग्रेजी मे लिखनाई इ हमर दिनचर्या सब दिन अखनो पर्यंत रहल !
व्यक्तिगत संतोषक लेल जे करैत छलहूँ से त ठीक मुदा सार्वजनिक भाषण क फेर मे हमहूँ फँसि गेलहूँ जे उचित नहि छल ! क्लास लेनाई ,अपन विभाग मे पढेनाई आ अपना संगठन मे व्यक्तव्य देनाई फराक अछि मुदा सार्वजनिक मंच पर भाषण देब उचित नहि ! बूझू इ त हमर भाग्य ,जे वो कोनो राजनीति मंच नहि छल !
अन्यथा हम विवादो मे फँसि सकैत छलहूँ !
मयूरभंज रोड ,कलकत्ता क सिवल कॉर्टर मे हमर सासुरक सार वर्ग मे अशोक बाबू रहैत छलाह ! स्थानीय फैक्ट्री मे प्रबंधक रहैथि ! ओहि ठाम सँ सटले हमर कमांड अस्पताल छल , जाहि मे हम कार्यरत रहि ! शनि आ रविबार केँ अशोक बाबू लग हम जाइत छलहूँ आ वोहो अबैत छलाह हमरा लग ! हुनक परिवार सँ हम सासुरे सँ परिचित छलहूँ ! मैथिल लोक कलकत्ता मे खूब पसरल छथि ! लगैत छल हम सासुरे मे छी ! अशोक झा जी बहुत दिन सँ एहि ठाम रहैत छलाह ! अलीपुर ,कलकत्ता मैथिल संघ क वो अध्यक्ष रहैथि !
10 नवंबर 1994 संध्या काल हुनके डेरा पर बेसारि भेल ! बेहला सँ कुमर ठाकुर एलाह ,रामेश्वर आ उमेश्वर जी कालीघाट सँ एलाह आर बहुत मैथिल लोकनि सहो आयल रहैथि ! गप्प -सप्प होइत रहल ! चाय ,झिल्ली आ कचरी चलल ! एहि क्रम मे बहुत रास गप्प भेल ! अशोक बाबू बैसले -बैसले चौंकी पीटैत सभकेँ अपना दिश आकर्षित करैत कहला ,—-
“ आगामी 14 नवंबर 1994 संध्या 7 बजे यूथ क्लब भूकैलाश मे हमरा लोकनि आमंत्रित छी ! अध्यक्ष महोदय आ सामाजिक कार्यकर्ता श्री दिगम्बर नारायण सिंह स्वयं आमंत्रित केने छथि ! आ विशेष क केँ डॉक्टर साहिब केँ कहने छथि आनय लेल !…….से बिसरब नहि !”
सब एक मत सँ कहलनि ,—
“ हाँ ….हाँ ……..अवश्य ! दिगम्बर बाबू बहुत किछू एहि एरिया क लेल केने छथि ! हुनकर आग्रह बूझू “ लक्ष्मण रेखा !”
मुदा हम असमंजस मे पडि गेलहूँ ! पता नहि ओहि दिन कतो हमर कॉल ड्यूटी त नहि हैत ? तें अशोक बाबू केँ कहलियनि ,—
“ अशोक बाबू ! हमरा त छोड़ि ये दिय त बढ़ियाँ ! कियाक त हमरालोकनिक ड्यूटी सेडुल बद्द बाधक बनि जाइत अछि !”
“ ओझा जी ! इ आग्रह विशेष श्री दिगम्बर जी केँ छनि ! आहाँ रहब त हमरो सबकेँ मन लागत ! ”—अशोक जी आग्रह करैत कहला !
आ सब लोक केँ सहो इच्छा छलनि जे हम चलू ! अंततः स्वीकार केलहूँ ! कोनो ड्यूटी हेत त चेंज क लेब ! सब ओहिठाम सँ बिदा भेलहूँ !
14 नवंबर 1994 संध्या काल हम सब अशोक बाबू क डेरा पर उपस्थित भेलहूँ ! निर्धारित समय मे हमरलोकनि यूथ क्लब ,भूकैलाश पहुँचि गेलहूँ ! अशोक बाबू सँ सटले यूथ क्लब छल ! अध्यक्ष श्री दिगम्बर जी आ अन्य सदस्य गण सँ परिचय भेल ! भव्य पंडाल लागल छल ! चमकैत रंग बिरंगी शामियाना ! बैसबाक लेल एक रंगा कुर्सी ! अनुमानतः 1000 छल ! लाइटिंग बंदोबस्त उत्कृष्ट छल ! स्टेज विशाल छल ! स्टेज पर 10 टा भव्य कुर्सी राखल छल ! सब कुर्सी केँ सोझा मे एकटा साइड टेबल राखल गेल छल ! सातटा स्टेज माइक टाँगल छल ! एकटा लेक्चर स्टैन्ड ! ओहि स्टेज क ऊपर बैनर टाँगल छल आ ओहिपर लिखल पैघ -पैघ अक्षर मे —“ पंडित जवाहर लाल नेहरू का सपनों का भारत !“
श्रोताक प्रथम पंक्ति मे हम सब बैसलहूँ ! अशोक बाबू ,उमेश्वर जी ,रामेश्वर जी आ छः सात गोटे स्टेज क समक्ष बैसलहूँ ! स्टेज पर एकटा उद्घोषक एलाह ! हुनका संगे 10 टा कन्या एक रंग परिधान मे सहो एलीह ! सब बंगाली संस्कृति परिधान मे अलंकृत छलीह ! हुनका हाथ में थारी आ थारी मे माला ,पुष्प आ प्रज्वलित दीप छल ! दिव्य वातावरण छल ! श्रोता आ दर्शक क भीड़ उमड़ि पडल छल ! उद्घोषक माइक पर आबि कलकत्ता क विशिष्ट अतिथि लोकनि क नामक उद्घोषणा क रहल छलाह ! कियो सेवानिवृत हाई कोर्ट क जज ,कलकत्ता यूनिवर्सिटी केँ सेवानिवृत उप कुलपति ,स्वतंत्रता सेनानी ,मेयर इत्यादि केँ स्टेज पर बजाओल गेल ! ओ सब स्टेजक कुर्सी पर आसीन भेलाह ! एहि बीच मे उद्घोषक उद्घोषणा केलनि ,—–
“ अब मैं कमांड अस्पताल, अलीपुर ,कलकत्ता से आए हुए डॉ लक्ष्मण झा “परिमल” को अनुरोध करूँगा कि हमारे इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आतिथ्य स्वीकार कर इस स्टेज की शोभा बढ़ाएं !”
एतबा उद्घोषणा क बाद चहू दिश ताली बज लागल मुदा हमर निशब्दः भ गेलहूँ ! बद्द अबूह बुझा रहल छल ! हम अशोक बाबू केँ कहबो केलियनि ,–“ इ की भ रहल छैक ? एहि योग्य त हम नहि छी !”
“ चलू ,चलू ओझा जी ! किछू समय क गप्प थीक “ अशोक जी ढाढ़स देलनि !
गेलहूँ ,कन्या माला पहिरैलनि ,पुष्प वृष्टि भेल ,आरती सब केँ उताराल गेल ! सब अतिथि केँ सम्मान स्वरूप चादरि उपहार देल गेलनि !
हमर हालत बूझू निर्जीव बनि गेल छल ! बूझू खूनक संचालन बंद भ गेल छल ! आब हुये केना नए केना एहिठाम सँ भागि ! अशोक बाबू केँ इशारा दैत कहैत छलियनि “ जल्दी हमरा निकालू !”
उद्घोषक एक एकटा अतिथि केँ बाजय लेल आमंत्रण करय लगला ! आब त हमरो बजाय पड़त ! बिना बजने कल्याण नहि ! उद्घोषक महोदय केँ कहा पठोलियनि जे हमरा अस्पताल शीघ्र जेबाक अछि !
उद्घोषक उद्घोषणा केलनि ,—-
“ अब मैं डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “ जी से अनुरोध करूँगा कि वो अपने विचारों को रखें “
धन्यवाद कहि माइक केँ सोझा आबि “ नेहरू का सपना ” क ऊपर अपन विचार रखलहूँ ! हमर अभ्यास आ प्रयास काज केलक ! स्टेज पर प्रशंसा भेल ! ताली सँ सौंसे पंडाल गुंजमान भ गेल ! हम इजाजत ल केँ ओहि ठाम सँ बिदा लेलहूँ ! ओना इ प्रोग्राम बहुत देत धरि चलल !
किछू दिनक बाद अध्यक्ष श्री दिगम्बर नारायण सिंह हमरा अपन आवास पर निमंत्रण देलाह ! आ हमरा धन्यवाद देलनि ! इएह हमर पुरस्कार छल जकरा आइ धरि सम्हारि केँ रखने छी !
=========================
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
09.07.2022.