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13 May 2024 · 1 min read

*~पहाड़ और नदी~*

मैं कहता था मुझे पहाड़ पसंद हैं
और तुम्हें?
तो वो हंसते हुए कहती थी नदी।
तब किसे मालूम था कि एक दिन
मैं पहाड़ सा जड़ हो जाऊंगा
उसे नदी सा अविरल रखने के लिए।

मैं पहाड़ हुआ वो नदी हुई।
मैं खड़ा रहा वो चलती रही।
मैं बढ़ा नहीं वो रुकती नहीं।
मैं सहता रहा वो चोट करती रही।
मैं बंटा नहीं वो मुड़ती रही।
मैं थका नहीं वो गरजती रही।
मैं निर्जन था वो सघन रही।
मैं धीर हुआ वो अधीर रही।

जीवन का सबसे कटु प्रहसन है
किसी गाए गए प्रेम के गीत में
एक पहाड़ और एक नदी का होना।

✍️ प्रियंक उपाध्याय

Language: Hindi
1 Like · 90 Views
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