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23 Apr 2024 · 2 min read

गौमाता की व्यथा

मैं उसे रोज अपने दरवाजे पर आते देखा करता.!

कातर दृष्टि से व्यक्त उसकी मूक याचना
देखा करता !

उसे कुछ बासी रोटियों से तृप्त आभार व्यक्त करते देखा करता !

यह मानव भी कितना निष्ठुर है ?
जिसको माता कहता है !
जिसके दुग्ध से पोषित होकर पला बड़ा होता है !

उसी माता को दुग्ध ना देने पर सड़क पर मरने के लिए छोड़ देता है !

निरीह माता भोजन की तलाश में दर-दर भटकती फिरती है !

कभी कचरे के ढेर में फेंकी हुई जूठन के डिब्बों में अपनी क्षुधा की शांति तलाशती रहती है !

कभी-कभी सड़क में हादसों का शिकार होकर अपनी जान गवां बैठती है !

कभी-कभी पंगु होकर नारकीय जीवन व्यतीत करने लिए विवश होती है !

कभी-कभी कचरा खाकर बीमार पड़ मृत्यु को
प्राप्त होती है !

भूख से त्रस्त वह सब्जी मंडियों का कचरा खाने के लिए बाध्य होती है !

वहां भी वह डंडों से पिटकर अपमानित दुःखी माता अपने मन ही मन में रोती है !

और ईश्वर से कहती है मुझे गौ माता क्यों बनाया ?

जिन्हें अपने बच्चों भांति पोषित कर बड़ा किया !
उन्ही ने मुझे ये घोर कष्टप्रद दिन क्यों दिखाया ?

ये जो धर्म की दुहाई देते हैं मुझे अपनी
माता कहते हैं !
मेरे संरक्षण की बात कहकर लड़ने मरने पर
उतारू होते हैं !

परन्तु अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मेरा शोषण करके मुझे मरने के लिए छोड़ देते हैं !

ये सब अपने स्वार्थ के लिए ही
मेरा गुणगान करते फिरते हैं !

फिर मुझे ही अपमानित प्रताड़ित कर
घोर कष्ट देते रहते हैं !

तू मुझे इस पवित्र नाम के बंधन से
छुटकारा दिला दे !

मेरा अस्तित्व पशु का ही रहने दे उसमें
मानव भाव ना मिला दे !

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