पहचान
तुम मुझे मेरे नाम से जानते हो
मेरी ऊर्जा को कहां पहचानते हो
ठोकरें ,रुकावटें कांटे सब मंजिल तक पहुंचाते हैं
पर तुम हो कि रास्तों को ही मंजिल मानते हो
मैं इस तिलिस्म सी दुनिया की
सीधी सरल बाशिंदी हूं
जो मैं हूं उसे छोड़ कर
ना मालूम मुझे किन-किन नामों से जानते हो
कभी देखा है किसी पंछी को
प्यास से तड़पते हुए
तुम तो समंदर साथ लिए फिरते हो
मगर खुद को प्यासा मानते हो
आओ बैठो सलीके से बंद करके आंखों को
भूल कर नाम को
देखो कभी भीतर खुद के
क्यों औरों की कहानियों से
खुद को पहचानते हो।