*पहचान*
अपनी पहचान ढूँढ रही हूँ मैं
क्या आईने में
जो प्रतिबिम्ब नजर आता है
वही मेरी पहचान है ?
या मेरे ह्रदय में जो उठ रहा
भावनाओं का तूफान है,
वही मेरी पहचान है ?
अपनी उपलब्धियों के दस्तावेज –
जो रखे हैं मैंने सहेज –
उसमें छिपी है मेरी पहचान क्या ?
आँकड़ों को पढ़ लेना
फिर भी आसान है ,
अतृप्त आकांक्षाओं का लेखा-जोखा
रखना है आसान क्या ?
अतीत से वर्तमान तक
किया है जितना भी सफर तय
उनकी स्मृतियाँ
साकार रखी हुई हैं
छायाचित्रों के रूप में –
उन्हें देखती हूँ याद-कदा ,
जो शीतलता पहुँचाती हैं
यथार्थ की तपती धूप में –
मगर वो कैसे हो सकती हैं
मेरी पहचान –
मैं जो हूँ
घटनाओं से
उद्वेलित, प्रभावित
वो तो हैं
बेजान, बे-जुबान –
मेरे सपनों की सलोनी दुनिया भी
मेरी पहचान नहीं हो सकती –
आँखें खुलते ही जो हो जाती हैं अदृश्य ,
उनमें मेरी पहचान नहीं खो सकती –
अलग अलग लोगों से जुड़ी हुई हूँ
अलग अलग रिश्तों में —
तो क्या मेरी पहचान भी
दी जाएगी किश्तों में —
मन और मस्तिष्क के
समुद्र मंथन के पश्चात् भी
हो नहीं पा रहा,
इस प्रश्न का समाधान –
कि क्या है मेरा अस्तित्व
और क्या है मेरी पहचान ?