पल दो पल ही पास तो बैठो
पल दो पल ही पास तो बैठो
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पल दो पल ही पास तो बैठो,
मत करियो उपहास तो बैठो।
तीनों से खेली नहीं जाती,
खेलोगे गर ताश तो बैठो।
अंदर तक छायी निराशा है,
मन में हो कुछ आस तो बैठो।
कोशिश को मिलता किनारा है,
करना हो प्रयास तो बैठो।
मनसीरत मन से सदा कहता,
समझोगे कुछ खास तो बैठो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)