पलक
कल ये जो उठी तो चांद नजर आया ,
और जब ये झपकीं तो धुंध अंधेरा छाया
काश झपकना इनकी फितरत में न होता
हम इक टक उस चांद को निहारते तो रहते
वो चांद को गजब का खूबसूरत है
झपक कर कमबख्त उसे खो देती है पलक |
कल ये जो उठी तो चांद नजर आया ,
और जब ये झपकीं तो धुंध अंधेरा छाया
काश झपकना इनकी फितरत में न होता
हम इक टक उस चांद को निहारते तो रहते
वो चांद को गजब का खूबसूरत है
झपक कर कमबख्त उसे खो देती है पलक |