पर पिया नहीं आए
दिल में उमंग का बढ़ता सैलाब,
साजन से मिलने को था जो बेताब,
नैना पलकें बिछाए, राह में उसकी, कर रही थी इंतज़ार,
समय का पहिया ना जाने कितने बरस को कर चुका था आर-पार,
पर पिया नहीं आए ।।
सपने को हकीकत मान, झलक पाने को थी बेकरार ,
सन्नाटा को शोर समझ, जो किया उसने फिर इश्क़ का इज़हार,
मोहब्बत में खुदा देखा, खुदा में इश्क़ की परछाई,
सवेरे का उठा पलक जब झपका, तब शाम थी हो आई,
पर पिया नहीं आए ।।
टूटी आस, स्वप्न, जिस्म की अंगड़ाई,
निर्झर रैन, छलके अश्क, सदियों की थी जो भर आई,
बिन गिरे नीर एक बूंद भी, भींगा ये तन उसका था,
पिया को याद अब तो आई मेरी, कह रहा मन उसका था,
पर पिया नहीं आए ।।
मोहब्बत को निभाना था,
और मोहब्बत में उन्हें ज़रा सताना था,
किस्मत नई लिख जानी थी,
दुनिया नई बसानी थी,
पर पिया नहीं आए ।।
दो वक़्त की रोटी छोर, लगा फिर चौखट का पहरा था,
पहरा ऐसा मानो, सूरज चांद धरती अम्बर, सब एक साथ कहीं ठहरा था,
वफा के सहारे भेजा जो इश्क़ का पैगाम था
हुस्न भी उनके नाम का, और किया इज़हार भी उसने सरेआम था ।
पर पिया नहीं आए ।।
करत इंतज़ार एक पल, एक पल कोसत इस यौवन को,
देख सखि के अत़्फ सुहाने, राधा भरि मन सोचत अपने मोहन को,
साजे संवारे खुद को, मानो अब तो बलाम जी आए,
बन चली साक़िया, पिया की खातिर, वो मयखाने सजाए,
पर पिया नहीं आए ।।
अब तो रात भयो भोर विहीन,
इश्क़ के अमीर वारिस बन चले अब दीन,
देख वफा ये उसकी, अब तो मिलने लगे थे खूब सम्मान,
बाहर को थी आई वो, अब बस चौखट तक सिमटा ना था उसका गैहान,
जिस्म तो अपना अब भी था, पर रूह हो चुका खुदा के नाम,
इश्क़ तो अपना अब भी था, और वफा कर चुकि पिया नाम,
पर पिया नहीं आए,
पर पिया नहीं आए,
पर पिया नहीं आए ।।
-निखिल मिश्रा