‘%पर न जाएं कम % योग्यता का पैमाना नहीं है’
आजकल बोर्ड की परीक्षाओं के धड़ाधड़ परिणाम आ रहे हैं। कोई भी बोर्ड हो सबमें होड़ है । सबके बच्चे 100% रिजल्ट दे रहे हैं। अब इसका श्रेय बच्चों को दिया जाय या शिक्षकों को या स्कूलों को या माता-पिता को समझ में नहीं आता। 99%,98,97, कहाँ तक गिनाएं 90% से कम किसी के आते ही नहीं। पर आखिर ये प्रतिभाएँ जाती कहाँ हैं? नंबरों के गट्ठर लिए फिरते हैं। कोई खरीददार नहीं। फिर इतना हो हल्ला क्यों।10% ऐसे भी बच्चे हैं जो बड़े स्कूलों में नहीं पढ़ते, माता-पिता अनपढ़ हैं ट्यूशन भी नहीं रख सकते।इतनी कमाई नहीं है। वो बच्चे पास भर हो जाते हैं।मैं तो उन्हीं बच्चों को बधाई दूँगी जो अभाव में रहते हुए , टीचरस से ट्यूशन न लगाने की दुत्कार , सुनते हुए, माता पिता से भी ये डाँट अरे इन किताबों के अलावा घर का भी कुछ काम किया कर। ढोर को पानी पिला दे, सानी काट दे,थोड़ा गोबर खेत में डाल आ । थोड़ी देर दुकान भी देख लिया कर बाबूजी को भी आराम मिल जाएगा। ये सब करने सुनने वाले बच्चे अगर उत्तीर्ण हो गए तो समझो वो ही बालक सच्चे अर्थ में विद्यार्थी हैं। उनमें स्वाध्याय के प्रति लगन है। ये नंबर दिखा दिखाकर उन बच्चों में हीन भावना न भरें । कुछ बनने के लिए अंक नहीं परिश्रम और लगन महत्वपूर्ण है। इसलिए बच्चों पर अंकों का दबाव बिल्कुल न डालें।
पड़ोस के 90%नंम्बर लाने वाले बच्चे से हमने जिज्ञासा वश पूछ लिया बेटा तुम किसका सपोर्ट करते राष्ट्रपति के पद के लिए। यशवंत जी का या मुर्मू जी
का ?
वो बोला मैं दोनों को नहीं जानता कौन हैं। मैं क्यों स्पोर्ट करने लगा किसी की। कोई भी बन जाय आंटी जी मैं तो टैस्टों की तैयारी मैं व्यस्त ह अभी।
मैंने पूछा देश का राष्ट्रपति कौन बन रहा है पता है? वो बोला मोदीजी हैं वही बनेंगे। मैं कुछ नहीं बोली। ऐसे नंबर किस काम के कि देश या समाज की कोई ख़बर ही न हो।
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