पर्वत, दरिया, पार करूँगा..!
बह्र — फेलुन4*
कब तक यूं दीदार करूँगा,
आ जाओ श्रृंगार करूँगा।
एक नज़र ग़र देख लिया तो,
कुछ पल आँखे चार करूँगा।
दुनिया के सब छोड़ झमेले,
जी भर तुमसे प्यार करूँगा।
धोखे, वादे, झूठ, तसल्ली,
खुद को अब तैयार करूँगा।
छोड़ दिया ग़र तन्हा मुझको,
खुद पर अत्याचार करूँगा।
ठान लिया है मैंने मन में,
अब न कोई रार करूँगा।
आखिर तो हूँ एक “परिंदा”,
पर्वत, दरिया, पार करूँगा।
पंकज शर्मा “परिंदा”