परिवार
तिनका तिनका जोड़ के
उभरे नीड धरौंदा
हर जुडती ईंट बने
किस्से ,याद सलौना
कोठी खूब इतरा रही
खुश बांह अपनी फैलाए
दस कमरों की भीड़ में
गुम अपनों की आवाज़े
बंगला गर्व से दमक रहा
समेटे बगल में शान
नौकरों की भीड़ से
पड़ी हैं उसमें जान
जीवन भर की दौड़ से
बिखरे अन्य सब काम
लक्ष्य एक बना जीवन का
हो अपना ईक मकान
घटती धरती, बढती जिंदगी
शहरों में अजब घुसपैठ
भागदौड से विश्राम कब
जब पंहुचे अपने फ्लैट
जाने कंहा पर खो गई
उस धर की बुनियाद
तीन पीढ़ी हर पल करती थी
परिवार एकसाथ होने पर नाज